The Congress scion must have forgotten that it was Dinkar’s poems that formed the clarion cry for overthrowing her grandmother Indira Gandhi’s regime
New Delhi: While Priyanka Vadra on Tuesday quoted ‘Rashtrakavi’ (National Poet of India) Ramdhari Singh Dinkar’s ‘Rashmirathi-Krishna ki Chetavani’ to liken Prime Minister Narendra Modi to Duryodhan from Mahabharat, she forgot that it was a false step to take.
The Congress scion must have forgotten that it was Dinkar’s poems that formed the clarion cry for overthrowing her grandmother Indira Gandhi’s regime. The hero of Emergency and anti-Congress anti-Indira Gandhi movement Jayprakash Narayan had quoted Dinkar’s ‘Singhasan Khali Karo Ke Janata Aati Hai’ from Ramlila Maidan in Delhi as call to war.
On June 25, 1975, in what was dubbed as the mother of all rallies at Delhi’s Ramlila Maidan, people had braved the scorching sun to come and hear Jayaprakash Narayan (JP), Morarji Desai, Atal Bihari Vajpayee, Chandrasekhar, and others. It was here that JP called for complete revolution or ‘Sampoorna Kranti’.
The rally had been organised to protest against Indira Gandhi’s authoritarian regime. It was here that JP recited Singh’s poem. Singh had also written a poem on the life of JP during the Quit India movement of 1942.
"सदियों की ठंढी-बुझी राख सुगबुगा उठी,
मिट्टी सोने का ताज पहन इठलाती है;
दो राह,समय के रथ का घर्घर-नाद सुनो,
सिंहासन खाली करो कि जनता आती है।
जनता?हां,मिट्टी की अबोध मूरतें वही,
जाडे-पाले की कसक सदा सहनेवाली,
जब अंग-अंग में लगे सांप हो चुस रहे
तब भी न कभी मुंह खोल दर्द कहनेवाली।
जनता?हां,लंबी – बडी जीभ की वही कसम,
“जनता,सचमुच ही, बडी वेदना सहती है।”
“सो ठीक,मगर,आखिर,इस पर जनमत क्या है?”
‘है प्रश्न गूढ़ जनता इस पर क्या कहती है?”
मानो,जनता ही फूल जिसे अहसास नहीं,
जब चाहो तभी उतार सजा लो दोनों में;
अथवा कोई दूधमुंही जिसे बहलाने के
जन्तर-मन्तर सीमित हों चार खिलौनों में।
लेकिन होता भूडोल, बवंडर उठते हैं,
जनता जब कोपाकुल हो भृकुटि चढाती है;
दो राह, समय के रथ का घर्घर-नाद सुनो,
सिंहासन खाली करो कि जनता आती है।
हुंकारों से महलों की नींव उखड़ जाती,
सांसों के बल से ताज हवा में उड़ता है,
जनता की रोके राह,समय में ताव कहां?
वह जिधर चाहती,काल उधर ही मुड़ता है।
अब्दों, शताब्दियों, सहस्त्राब्द का अंधकार
बीता;गवाक्ष अंबर के दहके जाते हैं;
यह और नहीं कोई,जनता के स्वप्न अजय
चीरते तिमिर का वक्ष उमड़ते जाते हैं।
सब से विराट जनतंत्र जगत का आ पहुंचा,
तैंतीस कोटि-हित सिंहासन तय करो
अभिषेक आज राजा का नहीं,प्रजा का है,
तैंतीस कोटि जनता के सिर पर मुकुट धरो।
आरती लिये तू किसे ढूंढता है मूरख,
मन्दिरों, राजप्रासादों में, तहखानों में?
देवता कहीं सड़कों पर गिट्टी तोड़ रहे,
देवता मिलेंगे खेतों में, खलिहानों में।
फावड़े और हल राजदण्ड बनने को हैं,
धूसरता सोने से श्रृंगार सजाती है;
दो राह,समय के रथ का घर्घर-नाद सुनो,
सिंहासन खाली करो कि जनता आती है।"
To remind the readers of MyNation, Indira Gandhi had proclaimed Emergency at the midnight of June 25, 1975 after JP had called for her resignation. The socialist had come out of retirement to lead the anti-emergency movement. He had sought Indira Gandhi's resignation after she had been found guilty of violating election laws by the Allahabad High Court.
Last Updated May 7, 2019, 7:40 PM IST